क्यूं

क्यूं

इतनी बेचैनी
इतना अनमनापन
इतनी उग्रता क्यूं है
इतनी बेसब्री
इतना बचपना
इतनी लापरवाही क्यूं है
इतना द्वंद
इतना फंद
इतनी अपेक्षाएं क्यूं है
ज़रा ठहरो
शांत बैठो
अंतर में झांको
चाहते क्या हो
निश्चय करो
धीर धरो
प्रयत्न अब करो
करते रहो
कमियां
खुद की ढूंढो, दूर करो
खूबियां
अपनी पहचानो, और सवांरो
जो यह सिलसिला चलता रहे
व्यक्तित्व हर क्षण निखरता रहे
मन में खुशियों के मोती भरें
अपेक्षाएं पूरी होती रहे।।

विधु गर्ग