श्री राम मंदिर-अयोध्या धाम

श्री राम मंदिर-अयोध्या धाम

सर्वव्यापी, घट-घट वासी , परम ब्रह्म परमात्मा प्रभु श्री राम, अपने भक्तों के संकल्प, संघर्ष, और मर्यादा को अभीष्ट करते हुए 22 जनवरी 2024 तदनुसार पौष शुक्ल द्वादशी , विक्रम संवत 2080 के अभिजीत मुहूर्त में, राम जन्म स्थान अयोध्या में नव्य-दिव्य-भव्य मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित हुए ।

रामलला विराजमान सहित चारों भ्राता के साथ 5 वर्षीय बालक राम के विग्रह दर्शन ने, पिछले 500 वर्ष के संघर्ष, अपमान और भारतीय आत्मा के दंश को, भाव विह्वल करती, नेत्रों से बहती अश्रुधारा के साथ , विस्मृत करने का प्रयास किया ।

आक्रांताओं के बर्बर अत्याचारों से ग्रसित, राजनीतिक कुचक्रों से षड्यंत्रित “अयोध्या” पिछली पांच शताब्दियों से अभिशप्त थी। युवा पीढ़ी, धर्मनिरपेक्षता के उलझे ताने-बाने में भ्रमित थी। भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता की अस्मिता अति संकुचित थी ।

प्रभु श्री राम की प्राण-प्रतिष्ठा ने, सुप्त पड़े, हिंदू आत्मविश्वास को जगाया है। हिंदू आस्था के प्रवाह ने सम्मान पाया है। भाषा, क्षेत्र, ऊंच-नीच, जाति भेद आदि को छोड़, हिंदू एकात्म दर्शाया है।

हिंदू धर्म संस्कृति, “सर्वे भवंतु सुखिना-सर्वे संतु निरामया” की भावना से ओत-प्रोत है । राम-राज्य की परिकल्पना, राज्य के छोटे से छोटे वर्ग या व्यक्ति के उत्थान के लिए भी, समान अवसर उपलब्ध कराने का संकल्प प्रदर्शित करती है। इसीलिए भारत एक राष्ट्र के रूप में , संपूर्ण विश्व को प्रकृति संतुलन के साथ मानव कल्याण हेतु, कार्य करने का संदेश देने की क्षमता रखता है ।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि भारत की आध्यात्मिकता और पश्चिम की भौतिक सुख-सुविधा का सही संतुलन ही विश्व के लिए कल्याणकारी है। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में “अयोध्या” इसी रूप में, इसी भाव के साथ संपूर्ण विश्व के लिए, उदाहरण बनी हुई थी ।

भारत ने लगभग एक सहस्त्राब्दि की पराधीनता से सहन की जा रही सांस्कृतिक , मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना की बेड़ियों से निकलकर “अयोध्या” के माध्यम से , भारतीय सभ्यता का दर्शन पूरे विश्व को करवाने का प्रयास किया है ।

अयोध्या एक प्रतीक स्वरूप है। यह प्रक्रिया स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही प्रारंभ हो चुकी थी । निरंतर धीमी गति के बाद, विगत कुछ वर्षों में , राजनीतिक इच्छा शक्ति एवं समयबद्ध न्यायिक निर्णय के कारण , तीव्रगति से कार्य संपन्न होने लगे ।

राम-राज्य की परिकल्पना में, व्यावहारिक स्तर पर, सभी को उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों। गांव-शहर, शिक्षित-अशिक्षित, धर्म-जाति ,भाषा, क्षेत्र, ऊंच-नीच अमीर-गरीब आदि की भिन्नता के उपरांत भी , न्यूनतम जीवन साधन जैसे भोजन, बिजली, जल, स्वास्थ्य,आवास इत्यादि सबको उपलब्ध हो सके।

विभिन्न आंकड़ों से स्पष्ट हो रहा है कि, भारत ने जीवन की न्यूनतम सुविधाएं , अब अपनी अधिकतम आबादी को उपलब्ध करवा दी हैं।

भारत की आत्मा और सूर्यवंशी भगवान श्री राम परस्पर एक दूसरे से संबद्ध माने जाते हैं। नव्य-दिव्य-भव्य “श्रीराम मंदिर” भारत की सांस्कृतिक, वैश्विक और सामाजिक चेतना की जागृति और उन्नति के अवसरों का संवाहक एवं प्रतीक के रूप में दृष्टिगोचर है।