आर्यभट्ट

आर्यभट्ट

आर्यभट्ट भारतीय गणित की अमूल्य धरोहर जाते हैं। इनका समय गुप्त काल के आसपास माना जाता है। विभिन्न विद्वानों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म 4-5 शताब्दी ईसा पूर्व भी माना जाता है ।
विक्रम संवत प्रवर्तक महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक रत्न “वराहमिहिर” ने भी आर्यभट्ट द्वारा की गई खोजों का गहन अध्ययन किया। फिर स्वयं भी अनेक सिद्धांतों एवं प्रणालियों को विकसित किया ।

आर्यभट्ट ने अपने जन्म स्थान बिहार के कुसुमपुर में अध्ययन- अध्यापन के अलावा पाटलिपुत्र की वेधशाला में काम किया। इसके साथ-साथ काल गणना के प्रमुख केंद्र उज्जैन में आकर भी कुछ समय गहन अध्ययन-अध्यापन किया।

आर्यभट्ट ने कई ग्रंथ लिखे। किंतु अधिकांश ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं। गीतिक पाद, गणित पाद, काल क्रिया पाद , गोपाल पाद ,आर्यभट्टिया इत्यादि कुछ ही ग्रंथ अब उपलब्ध हैं।

आर्यभट्टीया में
सतत भिन्न (कंटीन्यूअस फ्रेक्शंस)
द्विघात समीकरण (क्वाड्रेटिक इक्वेशंस)
घातश्रृंखला के योग (सम्स ऑफ़ पावर सीरीज)
ज्याओं की तालिका (टेबल ऑफ़ साइन)

गीतिक पाद में
समय की बड़ी इकाइयां

गणित पाद में
क्षेत्रमिति ,शंकु छाया, सरल द्विघात ,अनिश्चित समीकरण, युगपत

कालक्रिया पाद में
समय की विभिन्न इकाइयां ,ग्रहों की स्थिति का निर्धारण करने की विधि, अधिक मास की गणना, तिथियां, सप्ताह के दिनों के नाम आदि

गोपाल पाद में
आकाशीय क्षेत्र के ज्यामितिक, त्रिकोणमितिक पहलू , क्रांति वृत्त, आकाशीय भूमध्य रेखा, आसंधि, पृथ्वी के आकार , दिन और रात के कारण, क्षितिज पर राशि चक्रीय संकेतों का बढ़ना इत्यादि

आर्यभट्ट ने विभिन्न ग्रंथों में विभिन्न विषयों पर गहन विवेचना करके अपना अमूल्य योगदान दिया है।

पाई का मान
शून्य का ज्ञान
त्रिकोण का क्षेत्रफल
डायोफेंटाइन समीकरण
कीत्यंत वैज्ञानिक विधि
आर्यभट्ट एल्गोरिद्म
परिधि और व्यास का संबंध
ग्रहण के कारण
पृथ्वी की परिधि
नक्षत्रों का आवर्तन काल
वर्ष, दिवस, समय की गणना
कल्प, मन्वंतर, महायुग
पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमने,
इत्यादि के विषय में आर्यभट्ट ने बताया और अपने ग्रंथों में विशद चर्चा भी की है।

आर्यभट्ट द्वारा किए गए कार्यों को समझने और आगे बढ़ाने में तब से लेकर अभी तक विभिन्न विद्वान निरंतर कार्यरत हैं।

वंदे मातरम!!
विधु गर्ग