ये नाम
गांधी,जे.पी. या कोई और
सत्ता के गलियारे में मिटते चहूं ओर
ये नाम
नेताओं के राम
ये नाम जन-जन में बसते
ये नाम कर्मों से सिंचते
नाम बल से वोट बरसते
नाम बल से नेता पेट भरते
नामधारी जे.पी. या गांधी
आमजन हेतु मूल्यों की आंधी
देख रहे उत्तराधिकारियों की करनी
स्वार्थ वशीभूत उलटी सब कथनी
विषमता, झूंठ, बेशर्मी हावी देख
भारत मां की छाती पे मूंग दली देख
सद्आत्मा कचोट उठी है
जन्मभूमि कराह उठी है
इसीलिए अब
एक को नहीं, समग्र को, उठना ही होगा
जोश-औ-होश से, व्यवस्था को, सुधारना ही होगा।।
विधु गर्ग
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