वराहमिहिर

वराहमिहिर

विक्रम संवत प्रवर्तक महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में शोभित, खगोल विज्ञानी “आचार्य वराह मिहिर” का जन्म उज्जैन के कपित्थ ग्राम में माना जाता है। सूर्य उपासक “आदित्य देव” के पुत्र के रूप में वराहमिहिर का जन्म समय, कुछ विद्वानों के अनुसार चौथी-पांचवी शताब्दी भी माना जाता है ।

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट से प्रेरित वराह मिहिर ने गणित, खगोल विज्ञान, ज्योतिष, कालगणना इत्यादि विषयों पर बहुत काम किया । अपने मुख्य ग्रंथ वृहतसंहिता में पहली बार सटीक रूप से फलित ज्योतिष की अवधारणा को भी विकसित किया।

वर्तमान समय में पास्कल त्रिकोण (Pascal’s triangle) के नाम से प्रसिद्ध संख्याओं की खोज वराहमिहिर ने ही की थी। वे इनका उपयोग द्विपद गुणांक ( binomial coefficient) की गणना के लिए करते थे ।उनका प्रकाशिकी में भी बहुत बड़ा योगदान है । वराहमिहिर ने बताया कि परावर्तन, कणों के प्रति- प्रकीर्णन (back – scattering)से होता है। उन्होंने अपवर्तन की भी व्याख्या की। सबसे पहले वराह मिहिर ने ही अपने पंच सिद्धांतिका में अयनांश का मान 50.32 सेकंड के बराबर बताया ।

वराहमिहिर ने भी गुरुत्वाकर्षण बल के विषय में चर्चा की ।अपने पूर्ववर्ती आर्यभट्ट की तरह पृथ्वी को गोल बताया । उन्होंने आर्यभट्ट की साइन टेबल की सटीकता में सुधार किया । उन्होंने शून्य के साथ-साथ ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित भी किया। उन्होंने पहला 4×4 जादुई वर्ग भी बनाया।

वराहमिहिर की पंच सिद्धांतिका में पितामह, वशिष्ठ, रोमक ,पौलिस और सूर्य सिद्धांत का सार समाहित है।

पंच सिद्धांतिका में उन्होंने रक्तवर्णी मंगल ग्रह पर पानी और लोहे की उपलब्धता के विषय पर भी चर्चा की। सदियों बाद आधुनिक युग में नासा और इसरो भी इस बात की पुष्टि करते हैं।

वराह मिहिर ने कई ग्रंथ भी लिखे हैं । उन में कुछ मुख्य है बृहत्जातक, लघु जातक, पंच सिद्धांतिका,बृहत्संहिता इत्यादि। इन ग्रंथो में उन्होंने कई गणितीय और खगोल विज्ञान से संबंधित विषयों पर गहन अध्ययन और विवेचन किया है । वास्तु विद्या, भवन निर्माण कला , वायुमंडल की प्रकृति , वृक्षायुर्वेद, रत्न, मोती, इत्र निर्माण, घरेलू अनुष्ठान, खगोल विज्ञान ,ग्रहों की चाल, ग्रहण , बादल, फसल , विवाह पटल इत्यादि अनेक विषयों पर अपने निष्कर्षों से विद्वानों को प्रभावित किया।

“ज्योतिष विद्या एक अथाह सागर है , हर कोई इसे आसानी से पार नहीं कर सकता। मेरी पुस्तक एक सुरक्षित नाव है , जो इसे पढ़ेगा वह उसे पार ले जाएगी।”
वराहमिहिर का यह कथन निश्चित रूप से हम सबका मार्ग दर्शन करता है।

वंदे मातरम!!
विधु गर्ग