तिरंगा

तिरंगा

 

“वसुधैव-कुटुंबकम” की अवधारणा को पोषित करता हुआ सत्य, शक्ति, सहयोग, प्रेम, विश्वास के रूप में, भारत का मान “तिरंगा” अनवरत रूप से निरंतर “वैश्विक-क्षितिज” पर लहराता रहेगा।

 

 

 

15 अगस्त 1947 में स्वतंत्रता की घोषणा होने के साथ ही, ध्वजारोहण समारोह में उपस्थित लाखों लोगों ने “तिरंगे” में भारत की आत्मा की “प्राण-प्रतिष्ठा” कर दी थी ।

तिरंगा भारत के गौरव का प्रतिनिधित्व करता है,भारतीय मेधा की पहचान है, सनातन सभ्यता के प्रवाह का प्रतीक है। जल-थल-नभ में तिरंगा भारत को प्रतिष्ठित कर रहा है।

तिरंगा हर भारतीय का आत्मसम्मान है,जोश है, उत्साह है,और प्रेरणा भी है। विदेशों में बसे भारतीयों की पहचान है, इस पुण्य भूमि से जुड़ी उनकी आत्मा का मान है ।

लगभग 100 वर्षों से भारतीय जनमानस ने, अपनी आन-बान-शान का प्रतीक तिरंगे को बना रखा है।

आंध्रप्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी “पिंगली वेंकैया जी” ने लगभग 30 देशों के राष्ट्रीय झंडों का अध्ययन करने के बाद , सन 1921 में भारतीय झंडे का निर्माण किया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने, इस झंडे में ‘चरखे’ के स्थान पर सारनाथ स्थित अशोक-स्तंभ के ‘धर्म-चक्र’ को रख कर, सर्वसम्मति से राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दे दी।

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगे’ के नाम से सामान्य जन के, मन-मस्तिष्क पर छाया हुआ है । इस तिरंगे में मुख्यतः तीन रंग है, केसरिया, सफेद, और हरा । धर्म-चक्र नीले रंग से बना हुआ है । इन सभी रंगों का भारतीय संस्कृति में अपना महत्व है।

झंडे में सबसे ऊपर “केसरिया” रंग है, जो अग्नि, तेज, शौर्य, शक्ति और प्रतिदिन उगते सूरज की लालिमा के साथ नव-आशा और उत्साह का प्रतिनिधित्व करता है ।

बीच में “श्वेत रंग” वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को पुष्ट करते हुए सच्चाई, शुद्धता, पवित्रता और शांति का उद्बोधन करता है । सम्राट अशोक के समय स्थापित सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया “धर्म-चक्र” गतिमान समय को इंगित करते हुए संदेश देता है कि धर्म के अनुसार और समय के साथ, कर्म का समायोजन करते हुए निरंतर चलते रहना चाहिए। धर्म-चक्र की 24 लकीरें, दिन-रात के 24 घंटों की सूचक है।

“धर्म-चक्र” का नीला रंग, जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, अर्थात यह चंचल, गतिमान और जीवनदायिनी शक्ति का स्रोत है। यह महासागर और महाआकाश का प्रतीक है। यह अनंत, निरंतरता और सार्वभौमिकता व सत्य के साथ राष्ट्र की, प्रगति और न्याय को दर्शाता है ।

केसरिया और सफेद क्षैतिज पट्टी के नीचे, हरे रंग की क्षैतिज पट्टी होती है। हरा रंग जीवन में पोषण को पुष्ट करता है। यह उर्वरता, खुशहाली, समृद्धि , विश्वास और प्रगति का प्रतीक है। हरा रंग उत्सव-धर्मी माना जाता है, अर्थात जब-जब उर्वर भूमि, जीवन के भरण-पोषण के लिए अच्छी फसल का उपहार देती है, उस समय भारत-भूमि “उत्सव” के रंगों से भर जाती है, जैसे जौ, चने, गेहूं की फसल पकने पर होली, नवरात्रि, बैसाखी की धूम रहती है। इसी प्रकार खरीफ की फसल आने पर दुर्गा-पूजा, दीपावली, अन्नकूट की उमंग रहती है।

प्रकृति स्वयं भारतीय तिरंगे का प्रतिनिधित्व करती है। सबसे ऊपर प्रतिदिन सूर्य की प्रातः कालीन बेला “केसरिया बाना” धारण करती है। बीच की पट्टी में, सामान्यतः सच्चाई और शांति के साथ धर्म-चक्र में समाया जीवन, अनवरत रूप से चलता रहता है । भरण-पोषण युक्त हरी-भरी वसुंधरा सबसे नीचे हरी क्षैतिज पट्टी को इंगित करती है।

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगा” हर भारतीय के दिल में सम्मान, राष्ट्रप्रेम, अपनेपन,जोश इत्यादि जैसे भावों को उत्पन्न करता है।

पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, ऊंच-नीच, जांत-पांत, भाषा-धर्म, खान-पान, रहन-सहन इत्यादि की विभिन्नताओं में भी “तिरंगा” पूरे जनमानस को एक-सूत्र में बांधता है। भारत की गरिमा से जोड़ता है। तिरंगे के रूप में आने से पहले स्वतंत्रता संघर्ष के समय, भारत के झंडे ने कई पड़ाव भी पार किए हैं ।

1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय, सबसे पहले राष्ट्रीय ध्वज की योजना बनी। किंतु इस पर काम नहीं हो पाया । 1904 में विवेकानंद जी की शिष्या निवेदिता जी ने लाल, पीले, हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से एक ध्वज बनाया था। जिसके ऊपर की हरी पट्टी में 8 कमल थे, बीच की पीली पट्टी पर वंदे मातरम लिखा था और नीचे की लाल पट्टी पर सूरज चांद बने थे । इसे 7 अगस्त 1906 के पारसी बागान चौक(ग्रीन पार्क) कोलकाता में, कांग्रेस अधिवेशन में फहराया गया था ।

मतान्तर के साथ माना जाता है कि पेरिस में 1907 या 1905 में “मैडम कामा” ने भी ध्वज फहराया था । यह भी पहले वाले ध्वज के लगभग समान ही था, सिवाय इसके कि इसमें सबसे ऊपर एक कमल था और सप्तॠषियों को इंगित करते हुए 7 तारे थे। यह बर्लिन के समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।

इसके बाद 1917 में डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन के दौरान एक झंडा फहराया। जिसमें पांच लाल और चार हरी पट्टियां एक के बाद एक थीं। सप्तऋषि के रूप में 7 तारे भी थे । बांई ओर ऊपर की तरफ यूनियन जैक भी था। एक कोने में सफेद अर्द्ध चंद्र और सितारा भी था।

कांग्रेस के विजयवाड़ा सत्र में “पिंगली वेंकैया” नामक युवक ने लाल और हरी पट्टी का एक ध्वज गांधी जी को दिया, गांधीजी ने बीच में सफेद पट्टी और उस पर चरखे को इंगित करने का सुझाव दिया।

1931 में इस तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दी गई और स्वतंत्रता आंदोलन इस झंडे तले तीव्र होता गया।

22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने पिंगली वेंकैया द्वारा निर्मित इसी तिरंगे में ‘चरखे’ के स्थान पर, भारत की प्राचीन संस्कृति की पहचान को स्थान देते हुए सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के “धर्म-चक्र” को स्थापित कर, स्वतंत्र सार्वभौम राष्ट्र का “राष्ट्रीय-ध्वज” घोषित किया।

राष्ट्रीय ध्वज घोषित होने के साथ ही “तिरंगे” के संबंध में, राष्ट्र के मान सम्मान को ध्यान में रखते हुए, एक आचार-संहिता भी बनाई गई थी । समय-समय पर लोगों की तिरंगे के प्रति अपनेपन की भावना को देखते हुए संशोधन भी किए गए हैं।

आजादी के “अमृत-महोत्सव” के उपलक्ष में नवीनतम संशोधन 20 जुलाई 2022 को किया गया। इसके अंतर्गत तिरंगे को पूरे मान-सम्मान के साथ 24 घंटे भी फहराया जा सकता है।

मुख्यत: राष्ट्रीय ध्वज कर्नाटक के हुगली में 3:2 के अनुपात में विशेष प्रकार की खादी से तैयार किया जाता है।

स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर , पुनः जन-जन की भावना को “तिरंगे” के साथ प्रगाढ़ करते हुए “घर-घर तिरंगा” अभियान के तहत मशीन से बने पोलिएस्टर का उपयोग झंडा बनाने के लिए नवीनतम संशोधन के माध्यम से छूट दे दी गई है।

स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के उपलक्ष में भारत के 130 करोड़ लोगों को, अपनी राष्ट्रभक्ति की उत्साह, उमंग, जोश भरी अभिव्यक्ति करने का सुंदर अवसर मिलता है ।
कश्मीर से कन्याकुमारी हो या अरुणाचल से गुजरात , पूरा “भारत” आन-बान-शान के साथ 15 अगस्त “स्वतंत्रता-दिवस” पर तिरंगे में समाहित नजर आता है। बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित, अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण आदि, धर्म , जाति , भाषा, क्षेत्र का भेद भुलाकर “लहराते तिरंगे” के साथ पद-यात्रा, रैलियां इत्यादि करते हुए, स्वतंत्रता की वर्षगांठ मना कर, खुशियां जाहिर करते हैं।
इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया पर तो, लगभग पूरे सप्ताह की तस्वीरों में, चाहे वो व्यक्तिगत हों, समूह में हों, भिन्न-भिन्न दुर्गम स्थानों और घर-घर में, पूरे मान-सम्मान के साथ लहराता हुआ तिरंगा ही छाया रहता है।

इस से यह भी स्पष्ट होता है कि स्वतंत्रता से पहले भी और अभी भी संपूर्ण राष्ट्र तिरंगे के साथ एकजुट है।

सचमुच में “तिरंगा” राष्ट्र का मान है । हर भारतीय की आन-बान-शान है । भारतीय संस्कृति की पहचान है।
वंदे मातरम!!

विधु गर्ग