मैं

मैं,
पढ़ा-लिखा, सेक्यूलर
आधुनिक, खुले विचारों वाला
उच्च-मध्यम वर्ग का, नुमाइंदा
देश-दुनिया की खबरों से वाकिफ
जानता,
सोशल मीडिया का भी, जमा-घटा

तर्क-कुतर्क की, डिबेट के बीच
राइट-लेफ्ट की, लहर के बीच
सच को, भांप जाता हूं
झूंठ-फरेब के वादों में,
कामगार और मक्कारों में
भेद, पा लेता हूं

शतरंज की चालों सी, उलझी नहीं,
“तुष्टीकरण की नीति”
“क्लियर-कट” दिखाई देती है
व्यवस्थाओं में, बंधे लोग
और, चोट पहुंचाते लोग
साफ-साफ देख पाता हूं
सहिष्णुता और असहिष्णुता
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अलग-अलग खांचों में,
नजर आती है

अनेकता में एकता
ये “हिंद” की विशेषता
गौरवान्वित होता हूं
पर
जब बंटती है
अलग-अलग कौमों में, निष्ठा
तो फिर

मैं,
राष्ट्रवादी हो जाता हूं
समान नागरिक संहिता की
मांग करता हूं ।।

विधु गर्ग