संवैधानिक मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्व
संविधान में भारत के नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार और उसके साथ ही नीति निर्देशक तत्व (कर्तव्य) तय किए गए हैं।
वैसे तो किसी भी समाज में कर्तव्यों के आधार पर, अधिकार स्वत: ही प्राप्त होते हैं। किंतु 1000 वर्ष की पराधीनता के कारण, भारत के नागरिकों को बहुत अधिक अत्याचार सहन करने पड़े थे। इस कारण सामान्य जन के, आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पर गहरा आघात पहुंचा था। इसीलिए नागरिक अस्मिता को पोषित करने की दृष्टि से, संविधान में पहले मौलिक अधिकारों की बात की गई। किसी भी नागरिक के साथ, किसी भी आधार पर, कोई भेदभाव ना हो, इसलिए कानून के समक्ष सभी को समान रखा गया।
इसी के साथ-साथ भारत के नागरिकों एवं प्रशासन तंत्र को, नीति निर्देशक तत्व के रूप में, उनके कर्तव्यों का भी दायित्व समझाया गया।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवीय अधिकारों की आड़ में, विदेशी ताकतों द्वारा, कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों के माध्यम से, भारतीय सामाजिक संस्कृति को, नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए, संस्थागत तरीके से, पिछले 50-60 वर्षों में कई तरह के भ्रम पैदा किए गए हैं।
अब आवश्यकता इस बात की है कि सर्व अधिकार संपन्न भारतीय नागरिकों को, इस समय अपने कर्तव्यों (नीति निर्देशक तत्वों) पर अधिक काम करना चाहिए । ताकि “संविधान की मूल भावना” के अनुसार, भारतीय समाज में “सुदृढ़ सकारात्मकता” का विस्तार हो।
वंदे मातरम!!
विधु गर्ग
Leave a Reply