तुलसीदास जयंती

तुलसीदास जी

 

भारत की इस पुण्य धरा पर, आक्रांता जब लगातार आघात कर रहे थे। सनातन भारतवासियों पर अत्याचार कर रहे थे । अंधकार रूपी वातावरण में सूर्य-रश्मि की भांति , तुलसीदास जी का जन्म, उत्तर प्रदेश के कासगंज में 1511 ईस्वी में हुआ । गुरु नरसिंह बाबा की शिक्षा और आशीर्वाद से उनकी प्रतिभा का प्राकट्य हुआ।

तुलसीदास जी में, प्रेम की धधकती ज्वाला, पत्नी रत्नावली के उलहाने पर, वैराग्य की शांत सरिता बनकर बहने लगी।आक्रांताओं की ज्वालारूपी क्रूरता से दग्ध जनमानस को राम-नाम की भक्ति से सिंचित करने लगी।

भगवान शंकर की नगरी काशी में बैठकर , बाबा विश्वनाथ की कृपा से , आदि कवि वाल्मीकि के संस्कृत महाकाव्य रामायण को, तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के रूप में भारत के लोकजीवन को सौंप दिया ।

चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देते रघुवीर

सिया राममय, सब जग जानी
करहु प्रणाम जोरि जुग पाणि

भगवान राम और हनुमान जी की प्रेरणा और साक्षात्कार का अनुभव करते हुए , तुलसीदास जी ने भारतवर्ष के भविष्य को, सजग करने का प्रयास अपनी रचनाओं के माध्यम से किया।

अपने जीवन काल में तुलसीदास जी ने, रामचरितमानस के अलावा भी बहुत काव्य ग्रंथों की रचना की। इनमें कवितावली, गीतावली, शिव-पार्वती मंगल, जानकी मंगल, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका इत्यादि इत्यादि हैं ।

रामचरित मानस ने, राम कथा , रामचरित्र को जन-जन में पहुंचा दिया । समाज में नव-आशा का संचार किया। जबरन धर्म-परिवर्तन के कठिन समय में , सनातन हिंदू-धर्म को संबल दिया। तुलसीदास जी ने , भक्ति-काल के कवियों को प्रोत्साहित किया।

तुलसीदास जी की चौपाइयों में , जीवन के सरल सूत्र गूढ़ अर्थों में छिपे हुए हैं । जिनको समझकर सामान्य जन प्रभु-भक्ति के साथ-साथ, अपनी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके, विभिन्न क्षेत्रों में सफलता भी सहजता से प्राप्त कर सकते हैं।

भारतीय संस्कार के ऐतिहासिक आधार , भगवान श्री राम को घर-घर में जीवंत बनाने के लिए , कृतार्थ भारत तुलसीदास जी का सदैव नमन एवं वंदन करता रहेगा ।

विधु गर्ग