बर दंत की पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खोलन की।
चपला चमकैं घन बीच जगै छबि मोतिन माल अमोलन की॥
घुँघुरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलन की।
नेवछावरि प्रान करै तुलसी बलि जाउँ लला इन बोलन की॥
राम के बाल-रूप का वर्णन करते हुए तुलसी कहते हैं—कुंदकली के समान उज्ज्वल वर्ण दंतावली, अधरपुटों का खोलना और अमूल्य मुक्ता मालाओं की छवि ऐसी जान पड़ती है मानो श्याम मेघ के भीतर बिजली चमकती हो। मुख पर घुँघराली अलकें लटक रही हैं। तुलसीदास कहते हैं—लल्ला! मैं कुंडलों की झलक से सुशोभित तुम्हारे कपोलों और इन अमोल बोलों पर अपने प्राण न्योछावर करता हूँ।
स्रोत :पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 6) रचनाकार : तुलसी प्रकाशन : गीताप्रेस संस्करण : 201
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