चरन-कमल बंदौ हरि-राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौं सब कछु दरसाई।।
बहिरौ सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौ तिहि पाई।।
~सूरदास
चरन-कमल बंदौ हरि-राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे कौं सब कछु दरसाई।।
बहिरौ सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौ तिहि पाई।।
~सूरदास
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