भारत-रत्न श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

भारत-रत्न
श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद कर्नाटक के
मुद्दनहल्ली गांव में, शिक्षक एवं संस्कृत विद्वान श्री निवास जी व गृहणी वेंकटलक्ष्मा जी के यहां मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने ,15 सितंबर 1860 में पुत्र के रूप में जन्म लिया।

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने 1881 में बेंगलुरु में बीए की डिग्री , इसके बाद पुणे के इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियर लाइसेंस, इसके अलावा एल सी ई और एफ सी ई परीक्षा में प्रथम रैंक प्राप्त किया ।

विश्वेश्वरैया जी ने तत्कालीन बाॅम्बे सरकार के, लोक निर्माण विभाग में सहायक अभियंता के रूप में अपना कार्य आरंभ किया । उन्होंने नासिक में काम करते हुए धूलिया शहर के लिए पानी आपूर्ति सिस्टम बनाया।
साइफन संरचना, जल निस्पंदन प्रणाली, सिंचाई ब्लॉक प्रणाली तैयार की।

1893 में सिंध के सुकूर में सर एम.वी. ने अपने नवोन्मेषी विचार के द्वारा प्राकृतिक रूप से, स्वच्छ जल संग्रहण के लिए, नदी किनारे कलेक्टर वैल (कुएं) बनाए। जिससे पीने के पानी की समस्या का समाधान हो सका।
1903 में पुणे के खड़कवासला जलाशय की ऊंचाई बढ़ाए बिना , अधिक मात्रा में जल संचय के लिए स्वचालित स्लुइस गेट्स की प्रणाली विकसित की।

इस प्रणाली को उन्होंने पेटेंट भी करवाया किंतु इसकी रायल्टी का पैसा नहीं लिया।

1908 में मुंबई सरकार से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के उपरांत हैदराबाद में हिमायत सागर ,उस्मान सागर बांध के लिए काम किया । शहर को बाढ़ से बचाने के लिए, उपयुक्त जल निकासी व्यवस्था बना कर, हैदराबाद को भारत के पहले नियोजित नगर के रूप में स्थापित किया।

मैसूर के महाराजा श्री कृष्ण राजेंद्र वोडियार ने श्री विश्वेश्वरैया को 1912 में राज्य का दीवान नियुक्त किया।

 

अनिवार्य शिक्षा ,
आर्थिक परियोजनाओं ,
औद्योगीकरण को बढ़ावा ,
उन्नत कृषि के लिए विभिन्न सिंचाई संसाधनों पर कार्य ,
इंजीनियरिंग कॉलेज ,
मैसूर सैंडल आयल फैक्ट्री,
मैसूर साबुन फैक्ट्री ,
पहला भारतीय विश्वविद्यालय मैसूर विश्वविद्यालय ,
द बैंक ऑफ मैसूर ,
मैसूर चेंबर्स ऑफ कॉमर्स,
बेंगलुरु में सार्वजनिक पुस्तकालय ,
कन्नड़ साहित्य परिषद का गठन ,
लड़कियों के स्कूल एवं कॉलेज ,
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, कोलार गोल्ड फील्ड्स में बिजली की आपूर्ति , चीनी मिलों का उदय,
दक्षिण बेंगलुरु में जयनगर का लेआउट तैयार किया जिसे एशिया का सबसे अच्छा इलाका माना जाता है,
बेंगलुरु -चिकबल्लापुर लाइट रेलवे परियोजना शुरू की ,
भद्रावती आयरन वर्क्स परियोजना को टाटा स्टील के साथ जोड़ना,
कृष्णराज सागर बांध परियोजना इत्यादि को प्रारंभ करने में बहुत बड़ा योगदान रहा है।

स्वयं के पैसों से बेंगलुरु में जयचामाराजेंद्र पॉलिटेक्निक कॉलेज की शुरुआत की।

कृष्णराज सागर बांध अभी तक मैसूर का सबसे बड़ा लैंड मार्क है। विश्व प्रसिद्ध वृंदावन गार्डन भी इसकी तलहटी पर बसा हुआ है ।

वे गोपाल कृष्ण गोखले ,एमजी रानाडे इत्यादि स्वतंत्रता सेनानियों से प्रभावित रहे । आर्थिक नियोजन के विषय पर विश्वेश्वरैया जी ने इनके साथ बीसवीं सदी के शुरू में चर्चाएं भी की। 1920 में इसी विषय पर इनकी एक बुक भी छपी थी।

1938 से 1946 तक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से जुड़े तथा बहुत सी क्रांतिकारी योजनाओं पर कार्य किया।

एच ए एल और प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स के लिए भी आपने अपनी विशेषज्ञता प्रदान की। भारत में औद्योगिकरण और पंचवर्षीय योजनाओं में विश्वेश्वर्या जी के विचारों की छाप स्पष्ट नजर आती है।

विभिन्न देसी-विदेशी अवार्ड्स के अलावा 1955 में भारत रत्न से सम्मानित श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी ने अपने कार्यकारी जीवन के लगभग 30 वर्ष इंजीनियरिंग को 20 वर्ष प्रशासनिक कार्यों को और 20 वर्ष विभिन्न सरकारों के सलाहकार के रूप में समर्पित किए हैं।

सर्वकालिक श्रेष्ठ इंजीनियर श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया जी के जन्मदिवस 15 सितंबर को इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जाता है। ताकि युवा पीढ़ी प्रेरणा प्राप्त करती रहे ।