ताड़ना के अधिकारी

ताड़ना के अधिकारी

 

1 “रोको मत जाने दो”
2 “रोको, मत जाने दो”
3″ रोको मत, जाने दो”

तीनों ही वाक्यों में शब्द और मात्राएं एक समान है ।
पहला वाक्य अपने अपने हिसाब से अर्थ करने की स्वतंत्रता दे रहा है ।
दूसरा वाक्य एक “कौमा” के माध्यम से रुकने का आग्रह कर रहा है।
तीसरा वाक्य “कौमा” का स्थान बदलने पर ही, एकदम विपरीत अर्थ देते हुए, “जाने देने” की अनुशंसा कर रहा है।

“कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खाए बौराये जग , वा पाये बौराये।”

कवि ने “कनक शब्द” का “दो अर्थ” में प्रयोग किया है। “गेहूं और स्वर्ण धातु” के रूप में, खाने और पाने का प्रभाव बता दिया। इसी प्रकार बौराये का आशय भी “तृप्ति का अनुभव” और “अहंकार का मद” बता रहा है।

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे , मोती मानुष चून ।।

यहां पर भी “पानी शब्द” का अर्थ “तीन रूपों” में कवि ने व्यक्त किया है। मोती के लिए “आब”, मनुष्य के लिए “प्रतिष्ठा” और आटे के लिए “आद्रता”।

कवि अपनी कल्पना और शब्दों का प्रयोग व नवशब्द गढ़ने के लिए, स्वतंत्र होता है। कहा भी गया है:-
“जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि।”

तुलसीकृत रामचरितमानस की एक चौपाई पर बहुत ही नकारात्मक विमर्श स्थापित किया गया है। समय-समय पर इसके माध्यम से, समाज में गलत संदेश देने का प्रयास भी किया जाता रहा है। संदर्भ रहित व्याख्या की जाती रही है। गूढ़ार्थ और भावार्थ की अवहेलना करके, मात्र शब्दार्थ पर विवाद पैदा किया जाता रहा है।

” ढोल गंवार शुद्र पशु नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी।”

यहां पर “ताड़ना” शब्द का मात्र एक ही अर्थ बताने का प्रयास किया जाता रहा है। “ताड़ना का मतलब पीटना”, जबकि “ताड़ना का अर्थ, समझना, देखना” भी होता है। देखने से आशय ध्यान देना और संरक्षण देना भी होता है। यदि “ताड़ना का अर्थ देखना” के आधार पर चौपाई को समझें तो उसका अर्थ यह निकलता है :-
“ढोल” के संदर्भ में देखना मतलब ढोल बेताला तो नहीं बज रहा।
“गंवार” अर्थात विवेकहीन मनुष्य पर नजर रखना, कि कहीं कोई काम बिगाड़ ना दे।
“शुद्र” अर्थात मातहत कर्मचारी, जो दिए गए कार्य को ठीक से करे और उस व्यक्ति की (कर्मचारी की) आवश्यकताओं का ध्यान भी रखा जाए।
“पशु” के संदर्भ में देखना का अर्थ संरक्षण तो होता ही है, इसके अलावा यह भी ध्यान रखना कि वह पशु कहीं कोई नुकसान न कर दे।
“नारी” अर्थात स्त्री स्वभाव से कोमल , सरल और भावुक होती हैं‌ इसलिए यहां पर देखना का अर्थ , स्त्री को समझना और ध्यान रखना तो है ही, साथ ही साथ घर के बाहर की नकारात्मक प्रवृत्तियों के प्रति सचेत करना भी है।

” ताड़ना के अधिकारी” का शाब्दिक एवं भावार्थ भी यही है इन को “ताड़ना” (संरक्षण, समझना, देखना, ध्यान देना) इनकी बेचारी नहीं, इनका अधिकार है ।

स्वाभाविक सी बात है कि यदि :-
“ढोल” को “ताड़ा” नहीं जाएगा , अर्थात ध्यान नहीं दिया जाएगा और वह बेताला बजेगा तो उसे फेंका जा सकता है या नष्ट किया जा सकता है ‌।

“गंवार” अर्थात विवेकहीन मनुष्य पर नजर नहीं रखी जाएगी तो वह बनता काम बिगाड़ सकता है इस कारण उससे सब संबंध तोड़े जा सकते हैं , यह स्थिति उसके लिए हितकारी नहीं होगी।

“शूद्र” अर्थात मातहत कर्मचारी पर ध्यान नहीं देंगे, तो काम का निष्पादन उच्च कोटि का नहीं हो पाएगा और फिर उसकी आजीविका पर संकट आ सकता है।

“पशु” द्वारा कोई नुकसान होने पर , उसे घर से भी निकाला जा सकता है अथवा ज्यादा नुकसान की स्थिति में चोट भी पहुंचाई जा सकती है।

“नारी” स्त्री का संरक्षण, परिवार का संरक्षण है, प्रतिष्ठा का संरक्षण है, समाज और राष्ट्र का संरक्षण है। स्त्री ही “मां” बनकर समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है।

आवश्यकता इस बात की है कि, एक गलत विमर्श पर बल देने के स्थान पर, समाज के सभी व्यक्तियों द्वारा, अपनी स्वाभाविक बुद्धि का प्रयोग करके, एक सकारात्मक विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

समय काल परिस्थिति के अनुसार , अलग-अलग समय पर अलग-अलग मनिषियों द्वारा , “वेदों” की मीमांसा भी निरंतर होती रही है । मानव बुद्धि जड़ता का प्रतीक नहीं है, जीवंतता और कल्याण की वाहक है।

सामान्य बुद्धि के आधार पर भी, सामान्य जनों द्वारा रामचरितमानस की इस चौपाई के, स्थापित विमर्श का प्रतिकार सहज रूप से ही किया जा सकता है।

 

विधु गर्ग