ऋषि कणाद

ऋषि कणाद

 

” काणादं पाणिनीयं च सर्वशास्त्रोपकारम् ”

इस पंक्ति का आशय यह है कि ऋषि कणाद का वैशेषिक दर्शन और ऋषि पाणिनि के पाणिनीय व्याकरण को , सभी शास्त्रों का उपकारक माना गया है।

महर्षि, वैज्ञानिक, आचार्य कणाद का जन्म गुजरात के द्वारका के निकट प्रभास क्षेत्र में छठी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। वह उलूक, काश्यप और पैलुक आदि नामों से भी विख्यात हैं।

ऋषि कणाद समस्त अर्थ तत्व को 6 पदार्थों में विभाजित करते हैं (द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय)।
द्रव्यों को नौ की संख्या में विभाजित किया गया है (पृथ्वी, जल, तेज, वायु ,आकाश ,काल, दिशा, आत्मा और मन)।
गुणों को 24 में विभाजित किया है (स्पर्श ,रस, रूप ,गंध, संयोग, बुद्धि, धर्म, अधर्म, संस्कार प्रयत्न आदि)
कर्म के पांच प्रकार बताए गए हैं। सामान्य, विशेष और समवाय को भी दो-दो में विभाजित किया है।

” परमाणु” को जगत का मूल उपादान कारण माना गया है। ऋषि कणाद को परमाणु शास्त्र का जनक भी कहा गया है।
ऋषि कणाद ने बताया कि भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण “परमाणुओं” के संघनन से होती है।

 

वैशेषिक दर्शन एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है। इसके अनुसार समान दिखने और रहने पर भी, प्रत्येक वस्तु दूसरे से भिन्न है। इस भिन्नता के परिचायक एकमात्र “पदार्थ विशेष” पर अध्ययन विश्लेषण इस दर्शन का आधार है।
ऋषि कणाद ने किसी भी तत्व की लघुत्तम इकाई ,जिसे विभाज्य ना किया जा सके और उसमें उस तत्व के सभी गुण विद्यमान हो, उसे “परमाणु” नाम दिया और यह भी बताया कि परमाणु कभी स्वतंत्र नहीं रह सकता। दो परमाणु के संयोग से द्रव्य गुण उत्पन्न होता है । इसीलिए महर्षि कणाद ने “परमाणु” को ही अंतिम तत्व माना है।
ऋषि कणाद द्वारा रचित “वैशेषिक दर्शन ग्रंथ” में परमाणु संबंधित व्याख्या के अतिरिक्त शक्ति और गति के बीच के संबंध का वर्णन किया गया है । इसके अलावा कई अन्य भौतिक सिद्धांतों जैसे गुरुत्वाकर्षण के नियम, भूकंप का आना, वर्षा का होना ,चुंबक में गति, ध्वनि तरंगों आदि विषयों पर भी इस ग्रंथ में प्रकाश डाला गया है।

डाल्टन, न्यूटन आदि पश्चिमी वैज्ञानिकों ने जो भौतिक नियम 17वीं शताब्दी के बाद दिए वे ऋषि कणाद के 2600 वर्ष पहले दिए गए “भौतिक नियमों” का ही प्रतिरूप प्रतीत होते हैं।

 

वंदे मातरम!!
विधु गर्ग