नायक

देख जिसे
प्रसन्नता झलके
मिलकर उसे
मन पुलके
बोल ऐसे
चित्त सुहाते
हाजिर-जवाबी से
लगे ठहाके
निश्चल-सौम्य
गुण अनुरूप
व्यवहार-अभ्यास
हो प्रतिरूप
ऐसे में
न चाहते हुए भी
आशीष लिए उठे हाथ
ना चाहते हुए भी
उत्सुक हो करने को बात
और
बुजुर्ग नैनों में भांपते
हम-उम्र मुख ताकते
अपने दिलों में झांकते
कितने ही दावों के बीच
भरम के जालों के बीच
सच्चे तो सच्चे ही नजर आते
असल जिंदगी के नायक बन जाते।।

विधु गर्ग