गीता जयंती
भारतीय कालगणना ‘पंचांग’ के अनुसार, मार्गशीर्ष (अगहन) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को, सुदर्शन चक्रधारी भगवान श्री कृष्ण ने, आशंकाग्रस्त अर्जुन के द्वंद्वों को, समाप्त करने के लिए, कुरुक्षेत्र के युद्ध-मैदान में “गीता-संदेश” दिया ।
मोह , माया, कर्म- कर्मफल, प्रकृति-नियति, आत्मा-परमात्मा इत्यादि विषयों पर विस्तार से चर्चा करके, भगवान श्री कृष्ण ने अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराते हुए, अर्जुन के सभी भ्रमों का निवारण किया। इसीलिए शायद इस एकादशी को, मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है और प्रतिवर्ष गीता-जयंती के रूप में मनाया जाता है।
गीता के 18 अध्यायों में, 700 श्लोक संकलित हैं। जीवन के व्यवहारिक सूत्रों की अवधारणा गीता में समाहित है। इनमें जीवन के हर स्तर पर एवं हर स्थिति से संबंधित समाधान अंतर्निहित हैं।
मनुष्य का अधिकार केवल कर्म पर है, उसे परिणाम के बोझ से मुक्त होकर , अपने नियोजित सत्कर्म में पूरी निष्ठा के साथ ही रहना चाहिए । मनुष्य को जीवन में उत्कृष्ट प्राप्त करने हेतु, अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखना आवश्यक है, और मति-भ्रम से बचने के लिए, क्रोध पर विजय प्राप्त करनी है । भक्ति के साथ भगवान का सदा स्मरण करते हुए, प्रभु की अलौकिक शक्ति को सदैव अनुभव किया जा सकता है । समस्त सृष्टि भगवान का ही स्वरूप है और उसका अंश है। आत्मा अजर अमर है। प्रकृति निरंतर परिवर्तनशील है । सदैव प्रभु की शरण का भाव, मानव का उद्धारक है। परमपिता परमेश्वर के रूप में भगवान “श्री कृष्ण” गीता के माध्यम से, मानव को आश्वस्त करते हैं कि वह सदैव सत्कर्म, सदाचार के मार्ग पर चलने वालों का कल्याण करते हैं ।दुष्टों का नाश करने के लिए समय-समय पर पृथ्वी पर अवतार लेते हैं।
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मनं सृजाम्यहम्
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।
गीता जयंती के उपलक्ष में, हमें स्मरण रखना चाहिए कि भगवान श्री कृष्ण के सुझाए मार्ग पर चलकर जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त करके, हम मोक्ष के अधिकारी बन सके।
विधु गर्ग
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