बहता पानी

बहता पानी

दिल-औ-दिमाग
है,जैसे
बहता पानी
हो, रुख जिधर
बहे
उसी तरफ रवानी

क्रोध में
याद दिलाए
सब की ये नानी
हो प्यार, तो
सही-गलत
है, सब बेमानी

ना चाहे
कुछ करना
बनाए, अनगिनत कहानी
ठाने
तो, फिर
छू ले बुलंदियां आसमानी

लक्ष्यहीन बन
करे क्यूं, बर्बाद जवानी
शिशु सी सहजता
हिमालय की विशालता
संजो
तो सजे, जिंदगानी।।

विधु गर्ग