भारत का संवैधानिक संघीय स्वरूप
भारत एक राष्ट्र – एक आत्मा – एक चेतना है ।
ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर , ईसा से सदियों पूर्व या यूं कहें आज से लगभग तीन हजार वर्ष पहले से, यह राष्ट्र-चेतना भारतीय उपमहाद्वीप में विस्तृत थी।
पराधीन भारत में, यही चेतना विभिन्न रजवाड़ों और रियासतों में बंटी हुई नजर आने लगी।
1947 के बंटवारे के बाद की बंटी हुई भौगोलिक सीमा में, यह सामाजिक राष्ट्रीय-चेतना “स्वतंत्र-भारत” में संग्रहित हो गई ।
भारत का विस्तृत भू-भाग विभिन्न स्थानीय विशेषताओं , खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, बोलियों-भाषाओं, लोक परंपराओं आदि से समृद्ध है।
भारत के हर हिस्से की विशेषताओं को महत्व देते हुए, एक संघीय स्वरूप में, राष्ट्र को प्रतिष्ठित किया गया।
संघीय स्वरूप के “केंद्र” को अतिरिक्त शक्तियों के साथ, अधिक शक्तिशाली बनाया गया, ताकि विदेशी ताकतों से, संघ की रक्षा की जा सके, तथा आंतरिक रूप में भी “संघ” में कोई विघटन नहीं किया जा सके।
इस विषय पर भी तथाकथित बुद्धिजीवियों के माध्यम से, “संघ” की केंद्र और राज्य इकाइयों के बीच में, टकराव उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता रहा है।
भारत के “संवैधानिक संघीय स्वरूप” को सुरक्षित रखने की दृष्टि से, हम सभी को, हर स्तर पर, अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
वंदे मातरम !!
विधु गर्ग
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