शरद पूर्णिमा
उमंग-उत्सव की छिड़ी मधुर रागिनी
महालक्ष्मी आशीष-आरोग्य प्रदायिनी
लिए भोग खीर का, स्वागत शरद पूर्णिमा
संपूर्ण कलाओं से परिपूर्ण, शीतल चांदी सा चंद्रमा
अमृत वर्षा करती धवल चांदनी
नयनाभिराम चंद्रकिरणें मनमोहनी
भारतवर्ष की यह पुण्य धरा, छओं ऋतुओं से सुशोभित है। प्रत्येक ऋतु आशीर्वाद स्वरुप इस भूमि को पुष्ट करती है। वर्षा ऋतु, धरती-अंबर के बीच व्याप्त पूरे वर्ष की मलिनता को धो डालती है। दिन में नीलाभ नभ शोभायमान होता है, तो रात्रि की आकाश थाली, तारों से सजी,अपना सौंदर्य बिखेरती स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। हरी-भरी धरती और नीले आसमान ने, शरद की अगवानी के लिए, मानों पलक-पांवडे़ बिछा दिए हों।
शारदीय नवरात्रों से चंद्रमा दिन प्रतिदिन स्वयं को पूर्णता की ओर ले जाते हुए, शरद पूर्णिमा पर संपूर्ण होकर, शरद ऋतु का अभिनंदन करता है ।
फलस्वरूप स्वागोत्सुक एवं उल्लसित जन-समुदाय द्वारा, शरद आगमन उत्सव पर, चांदी सी चमकती, चांद की चांदनी में , थाली में सजी खीर को, शरद पूनम के सुंदर शीतल चंद्रमा को, भोग अर्पण करके, आशीष स्वरूप, प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत आरोग्य प्राप्त किया जाता है।
फसल पकने पर अक्षत भंडार और पशुधन समृद्धि और खुशहाली के प्रतीक के रूप में दूध तथा चावल का उपयोग करके खीर का भोग बनाया जाता है।
मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही , राधा और गोपियों के साथ रास रचाया था, और चंद्रमा ने भाव-विभोर हो अमृत बरसाया था।
चंद्रकिरणों को आत्मसात करते हुए, चिंतन-मनन ध्यान संकीर्तन के साथ, तन मन धन पर, महालक्ष्मी का विशेष अनुग्रह प्राप्त किया जाता है ।
शरद पूर्णिमा, सुख-समृद्धि एवं शांति व आरोग्य का प्रतीक मानी जाती है ।
विधु गर्ग
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