21वीं सदी की
तथाकथित आधुनिक
नई पीढ़ी को
सांस लेना भी नहीं आता
और गुजरी सदी के
आखिरी दशकों में
बने मां-बापों को
सिखाना भी नहीं आता
दोष उनका भी नहीं
सीखा उन्होंने भी नहीं
सीखने की जरूरत न थी
हवाएं विकसित न थी
धूप-माटी, हवा-पानी में पुते वे दकियानूसी,दादी-नानी की सुनते थे
बंद कमरों में नहीं
बढ़ते थे अंबर तले
फिर विकासशील से
विकसित दुनिया में जा मिले
चूक यहीं करने लगे
जड़ों से कटने लगे
नई नई दुनिया के
रंगों में रंगने लगे
विकास की अंधी दौड़ ने
बेजा ताकत की होड़ ने
प्रकृति पर प्रहार किया
कोरोना से संहार किया
दादी-नानी याद आने लगी
नई पीढ़ी, नुस्खे अपनाने लगी
महामारी से ही सबक लें
अब तो गांठ बांध लें
बढ़ें आगे बढ़ते चलें
परंपराओं की जड़ें सींचते चलें ।
21वीं सदी
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