ऐ औरत

ऐ औरत

ऐ औरत
तू
शरिया की शतरंज में
बिछती गहरी चालों से
पिटता हुआ अदना सा
मोहरा है

या

ऐ औरत
तू
इंसानियत की खान है
संसार का मान है
जीवन-प्राण है
तू मां है

ऐ औरत
सुन
दर्द तेरे , तेरी हिम्मत है
नवांकुर तेरी ताकत है
चुनना तुझे ,अब खुद है
अपनी दशा-औ-दिशा

ऐ औरत
जमीन से जुड़ी हुई
बाहरी तू है नहीं
जबरन बंदी बनी
जड़ों को अपनी जान ले
मूल को अपने, पहचान ले

भविष्य के लिए, वर्तमान छोड़
मजहब की दीवारें, फोड़
बंदिशों की बेड़ियां, तोड़
हाथ से हाथ जोड़

सब मिल
नई तकदीर – नई तारीख सजा
औलादों को इंसां बना
औरत का मान सिखा
क्योंकि तू मां है
जीवन – प्राण है ।