कर चले हम फ़िदा-कैफ़ी आज़मी

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को ना रुकने दिया
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने ना झुकने दिया

मरते-मरते रहा बाँक पन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

ज़िंदा रहने के मौसम बहोत हैं मगर
जान देने की रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क़ दोनों को रुसवा करें
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं

आज धरती बनीं है दुल्‍हन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

राह क़ुर्बानियों की ना वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नये क़ाफ़िले
फ़तेह का जश्न इस जश्न के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले

बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

खेंच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाये ना रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छूने पाये ना सीता का दामन कोई

राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

~कैफ़ी आज़मी