मैरिटल रेप-भारतीय परिपेक्ष्य
भारतीय सनातन-संस्कृति में, विवाह को पवित्र संबंध के रूप में स्थापित करके, सभ्य समाज की नींव डाली गई। विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में, स्थापित किया गया । जहां प्रेम, समर्पण, सुख-दुख, इच्छा- अनिच्छा इत्यादि, मानवीय पहलू पति-पत्नी में सांझे होते हैं ।धीरे-धीरे पति-पत्नी रूपी इस इकाई का प्रभाव, उनके बच्चों , परिवार एवं समाज पर होता है।
यदि वैवाहिक संस्था पर द्वेष , आक्षेप इत्यादि दोष लगते हैं, तो समाज का भी विघटन निश्चित है।
आजकल “मैरिटल रेप” या वैवाहिक बलात्कार शब्द का प्रचलन काफी व्यापक स्तर पर किया जा रहा है और अदालती कार्यवाही का भी विषय बन रहा है।
यह शब्द (मैरिटल रेप) ही, तुरंत कई प्रश्न एवं भ्रम उत्पन्न करता है ।
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इस शब्द का प्रयोग किस संदर्भ और सामाजिक स्तर पर किया जा रहा है यह जानना इसलिए भी जरूरी है कि, निम्न स्तर पर महिलाओं और पुरुषों को इस तरह के अदालती आदेशों और कानूनों इत्यादि की न तो ज्यादा जानकारी होती है ,और ना ही उन्हें इन सब बातों के लिए समय होता है। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य , निश्चित काम करते हुए दो समय की रोटी का प्रबंध होता है। इसके अलावा अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति उत्सुकता होती है, बाकी चीजें “पति-पत्नी” प्रेम से या लड़-झगड़ कर खुद ही निपटा लेते हैं।
मध्य आय-वर्ग, जागरूक एवं नैतिक मूल्यों का पालन करने वाला है। वहां यदि पति-पत्नी में कोई समस्या है, तो तलाक और अदालत जैसे विकल्प उन्हें अच्छे से मालूम है ।
उच्च-आय वर्ग, तो वैसे भी, बहुत सी अदालती और कानूनी बाध्यताओं से स्वयं को ,ऊपर समझता है । किसी भी विषय पर वकीलों की फौज उनकी सेवा में हाजिर रहती है।
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किसी भी पति के ऊपर इस तरह के आक्षेप का उद्देश्य क्या है ? इससे हासिल क्या करना है ?इस आक्षेप के बाद, क्या पत्नी ऐसे पति के साथ रहना पसंद करेगी ? क्या समाज में , परिवार में, और बच्चों की नजर में, अपने पति को गिराकर विवाह रूपी संस्था के प्रति न्याय करेगी? निश्चित रूप से नहीं।
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इस तरह का “आक्षेप-युक्त पति” अपने नकारात्मक अवसाद के साथ, समाज में कोई सकारात्मक योगदान कैसे दे सकता है? जबकि हर तरफ , उस पर नकारात्मक नजर उठ रही है । इस कारण, समाज में नई समस्याएं पैदा होने की प्रबल संभावना उत्पन्न हो सकती हैं।
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पति-पत्नी में ये आरोप तय करने के लिए , गणना का मानक क्या होगा? अन्य स्थितियों के प्रभाव का निर्धारण कैसे होगा? आरोप की सत्यता का आधार क्या रहेगा ? पति के विरुद्ध षड्यंत्र की भी पूरी संभावना हो सकती है।
इस वैश्वीकरण की दुनिया में हमारी आज की युवा पीढ़ी ,स्वत: ही पर्याप्त जागरूक है ।संविधान प्रदत्त समानता के अधिकारों के साथ नए-नए कीर्तिमान भी स्थापित कर रही है। प्रकृति प्रदत्त विशेषताओं के कारण ,आज भी “स्त्री” ही परिवार एवं समाज की धुरी भी है और निर्मात्री भी है । स्त्री के प्रति, किसी भी तरह का अन्याय सर्वथा अक्षम्य ही है ।
पश्चिमी अंधानुकरण के प्रवाह में, आज की स्त्री को नारी की नैसर्गिक विशेषताओं जैसे प्रेम, माधुर्य, समझ, बुद्धिमता को स्वयं भी संजोते हुए, प्रभावी तरीके से भावी पीढ़ी को सौंपने का एक और दायित्व भी उठाना पड़ रहा है । युवा पीढ़ी बड़ी ही शीघ्रता के साथ भ्रम का शिकार हो सकती है ।
समाज में क्षमा , सहिष्णुता परिवार के साथ ही आती है । प्रेम, माधुर्य और बुद्धिमता के साथ, पारिवारिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है । परिवार रूपी इकाई को, यथासंभव कानून, पुलिस और अदालती कार्यवाही से स्वयं को दूर रखने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इन प्रशासनिक इकाइयों की, व्यवहारिक गतिविधियां ,जाने-अनजाने ,चाहे – अनचाहे अधिकांशतः पारिवारिक इकाई को ध्वस्त ही कर देती हैं । किसी भी “स्त्री-पुरुष” के प्रति कोई अन्याय न हो , यह जिम्मेदारी “पति-पत्नी”, परिवार एवं समाज की भी है । अदालत और कानून तो , अंतिम विकल्प के रूप में ही मान्य होने चाहिए।
विधु गर्ग
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