व्रत – अनुष्ठान साधक ही साधें
जप-तप-पूजा, हम नहीं जाने
सही-गलत के, द्वंद घनेरे
शिशु-सम बालक, हैं तुम्हरे
भाव-स्वभाव,मैया जी जाने
रोम-रोम , मां ही पहचाने
मातु-हृदय,बालक में बसता
इच्छित-श्रेष्ठ, निश्चित, नित करता
अधीर मन, धीर ना धारे
जय मां,जय मां,जय मां ही उचारे
करहुं प्रणाम, कर-जोरि नव दुर्गे
नतमस्तक विनय, करूं जगदंबे
रोग-शोक,दुःख-दारिद्र, तन-मन के मेटो
शुभ-संस्कार संतति, सुख-समृद्धि देवो
भाव-भक्ति भर,चरणन, शीश नवावैं
मातु-कृपा आशीष सौं, जनम सफल बनावैं।
ॐ सर्व मंगल मांगल्ये ,शिवे सवार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी, नारायणी नमोस्तुते ।।
रूपं देहि, जयं देहि, यशो देहि, द्विषो जहि।।
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