श्वेतवर्णा कमलवसना शुभ्र वस्त्रधारिणी
वीणावादिनी ब्रह्माणी हे हंस वाहिनी
नव-रस नव-सृजन नमामि रचनाकारिणी
ब्रह्मसृष्टि गूंज उठी
वीणा की झंकार सजी
नमन तुम्हे मां सरस्वती
कल-कल करती सुरसरि
पवन चल रही सरसरी
ध्वनि रस भरी वागेश्वरी
अज्ञान अंधकार निस्तारिणी
कलाओं की हे स्वामिनी
जग कृतार्थ विद्यादायिनी
निशब्द – शब्द भाव दानी
सुर-संगीत प्रदायिनी
वर दो भक्त तारिणी
जय जय जय पद्मासिनी
जय जय जय वरदायिनी
जय जय जय वीणावादिनी।।
विधु गर्ग
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