गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात् परम् ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
हैं हम मूर्ख – अज्ञानी
ना सत्कर्मी, ना दानी
शिष्य सी, भी नहीं पात्रता
गुरु की ही है, महानता
जय जय जय गुरु महाराज
जय हो स्वामी जी महाराज
दुख – कष्ट दूर करो
वरद-हस्त शीश धरो
अंतर्मन भाव भरते रहें
नमन-वंदन हम करते रहें
गुरु-संस्कार – मान लिए
प्रसन्न मन, हर क्षण जियें
भव से, जीवन नैया तारना
कर-बद्ध है, बस यही प्रार्थना।।
तीन लोक ब्रह्मांड में , गुरु से बड़ा न कोय,
कर्ता करे न कर सके , गुरु करे सो होय।।
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