फ्लाईओवर पर दौड़ती चमचमाती गाड़ियां
मेट्रो में आवागमन करती लाखों सवारियां
प्राचीन अर्वाचीन स्मारक कहते भारत की कहानियां
विकास मानक मिटाते, पूरब पश्चिम की दूरियां
दो करोड़ लोगों की दिल्ली, क्या सचमुच ऐसी
नहीं!! ज्यादातर दिल्ली पिछड़े गांवों जैसी
बन गई यमुना भी, गंदे पानी के नाले जैसी
लटकते तारों में उलझी गलियां खतरे जैसी
सड़क किनारे खड़ी, धूल-धूसरित गाड़ियां
कदम दर कदम बदबू मारती कचरे की ढेरियां
हर मोहल्ले में बड़ी होती अमीर गरीब की खाइयां
किलोमीटरों में बढ़ती रेल-पटरी के साथ कच्ची बस्तियां
कहीं से भी कोई आता, बन जाता दिल्ली का
खाता – कमाता, पर हो ना पता दिल्ली का
दम घौंटू वातावरण में,दम घुट रहा दिल्ली का
कोई तो हो, जो अपना बन सुध ले दिल्ली का।।
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