सर्द अंधियारी रतियां ढलने लगी
कुहासे की चादर सिमटने लगी
गुनगुनाती धूप निखरने लगी
अलसाई छटा चहकने लगी
नित नई कोंपल खिलने लगी
वासंती पुरवाई महकने लगी
नव सृजन धरा संवरने लगी
नव – रचना , नव राग-रागिनी
सुस्वागतम् अभिनंदन बसंत पंचमी।
अभिनंदन
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