समर्पण

समर्पण

ना रूकता
ना थकता
संघर्षों में भी निखरता
कठोर होताs
अनुशासित करता
हृदय वात्सल्य पगा रहता
जड़ों से जुड़ा
ऊंचा आकाश दिखा
नींव भविष्य की धरता
तन समर्पित
मन समर्पित
धन समर्पित
कर्म समर्पित
जीवन समर्पित
विरासत विस्तारित
पिता ही तो है
या फिर
पिता सम राजा ।