नवदुर्गा

।।सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

नवदुर्गा, नव-रूपा, जनकल्याणी
भक्ति-शक्ति, मुक्ति प्रदायिनी
सिद्धि-समृद्धि, वात्सल्य दायिनी
चर-अचरा जगत धारिणी
नमः नमः मां जगदंबा जग तारिणी।।

कीटाणु-विषाणु एवं जीवाणु से ग्रस्त जगत में, आशंका , भय व मूर्खता युक्त समाज को,बुद्धि ,विवेक ,स्वास्थ्य – संचार के लिए,कल्याणमयी-वात्सल्यमयी मां जगदंबा की,भक्ति-शक्ति जप-तप हेतु,
सनातन – संस्कृति से,ऋतु – परिवर्तन काल में, नवरात्रि का पर्व,
नव-ऊर्जा और नव-उत्साह का प्रतीक है।

।। शैलपुत्री , ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री – नव दुर्गा माता का नवरात्रि में पूजन विधान है ।।

वृषभारूढ़ा ,सौम्यस्वरूपा , तेजोमयी , “माता शैलपुत्री”, सद्भाव जागृत करने वाली हैं।

चारभुजा, पद्म धारिणी ,पद्मासना ,”माता ब्रह्मचारिणी”, सदाचरण को प्रतिष्ठित करती हैं।

सिंहसवारीणी, खड्गधारिणी, अष्टभुजी, “चंद्रघंटा माता”, भय – भ्रम के ,अंधकार को चीर , चंद्र किरणों सी शीतलता प्रदान करती हैं।

त्रिशूल , गदा , इत्यादि के साथ , अमृत कलश धारण करने वाली, “माता कुष्मांडा” , भाव भक्ति में , अमृत का संचार करती हैं।

आयुधधारिणी, शेरोंवाली, स्कंद भगवान को गोद में लिए, “स्कंदमाता” संपूर्ण जगत में, वात्सल्य बरसाती हैं।

मुनि कात्यायन की कन्या, अष्टभुजी, शस्त्र धारिणी, “माता कात्यायनी”, नकारात्मक राक्षसीवृतियों, का संहार करती हैं।

गर्दभासीन, भयंकरी ,शुभंकरी , कालरात्रि “काली माता” , घोर विपत्ति एवं काल को भी समूल नष्ट कर देती हैं।

श्वेतवर्णा ,श्वेतवसना, मनहर , मनोहारी “महागौरी मां”, सुख – शांति प्रतिस्थापित करती हैं।

दुखहरणी, सुखकरणी, जगत जननी “सिद्धिदात्री माता”, सुख – समृद्धि , संतति- संपत्ति, आरोग्य – वैभव , सभी सद्गुण प्रदान करती हैं।

ऋतु परिवर्तन के समय होने वाले ,नवरात्रि पर्व, संपूर्ण भारत में, जनसाधारण द्वारा ,बहुत उत्साह से मनाये जाते हैं क्षेत्रीय एवं स्थानीय परंपराओं का समावेश भी, इन पर्वों को अति विशिष्ट बना देता है।

सामान्यतया नवरात्रि के दिनों में, जनसामान्य, सात्विक आहार-विहार और शुभ आचरण का प्रयास करता है । जप- तप, व्रत – हवन इत्यादि करके सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति को चेष्टा करता है । स्व कल्याण, राष्ट्र कल्याण के साथ-साथ विश्व कल्याण की प्रार्थना करता है ।

सनातन काल से, सनातन संस्कृति में ,नव दुर्गा की, शक्ति पूजा का विशेष महत्व रहा है । आदिकवि श्री वाल्मीकि कृत रामायण में, नकारात्मक शक्ति के प्रतीक रावण को , परास्त करने हेतु त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने, मां दुर्गा की शक्ति पूजा की थी, तथा देवी मां ने प्रसन्न होकर विजयी भव:, का आशीर्वाद दिया था।
भारतीय गुलामी के इतिहास के दौरान, औरंगजेब के शासनकाल में ,मराठों को एकत्रित करने के साथ, शिवाजी महाराज नित्य प्रति “मां भवानी” की आराधना करके, उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हुए , राष्ट्र को संगठित करने का प्रयास कर रहे थे । फलत: छत्रपति शिवाजी के रूप में प्रतिष्ठित हुए। दुष्कर परिस्थितियों से सामना करते समय प्राय: शक्ति पूजा की परंपरा चली आ रही है।

जिस प्रकार, प्राणी , अपनी छोटी-छोटी गलतियों से प्रकृति को नुकसान पहुंचाता है और असंतुलन पैदा करता है तो पृथ्वी में नकारात्मकता भर जाती है। उसी प्रकार, जब सामान्य जन ,अपने सद्भाव, सदाचार का अंश – अंश योगदान करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है। नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि पर्व, शक्ति की आराधना का माध्यम बनकर , जनसाधारण द्वारा, सकारात्मक ऊर्जा में, गुणात्मक वृद्धि करके , समस्त सृष्टि और प्राणी मात्र में उत्साह का संचार करता है।

।।या देवी सर्वभूतेषु, शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
सर्वे पश्यंतु भद्राणि मां कश्चित् दुख भाग्भवेत् ।
वंदे मातरम!
विधु गर्ग