हाड़ी रानी

हाड़ी रानी

यूं ही नहीं कहा जाता कि “स्त्री ही जीवन को दिशा देने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है” चाहे वह दुर्गा रूप में हो या फिर अन्नपूर्णा रूप में। सनातन धर्म संस्कृति में स्त्रियां, कर्म को धर्म मानकर, पति और परिवार को, धर्म, कर्म-पथ पर चलने के लिए प्रेरित करने का सामर्थ्य रखती हैं ।

इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से अंकित ऐसे हजारों प्रसंग मिल जाते हैं।

मेडिकल एवं इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए विख्यात राजस्थान के कोटा-बूंदी क्षेत्र को , स्वतंत्रता उपरांत विलय से पहले “हाड़ौती अंचल” के रूप में जाना जाता था ।

लगभग 350 साल पहले सत्रहवीं शताब्दी में, बूंदी के शासक हाडा थे । हाडा शासक के बेटी का विवाह मेवाड़ (उदयपुर) के सलूंबर ठिकाने के “राव रतन सिंह चूडा़वत” के साथ तय हुआ । राजपूत राजकुमारी, रूपवती और गुणवती थी। मंगलाचार सहित पाणिग्रहण के उपरांत, राव रतन सिंह चूडा़वत, नववधू हाडी रानी के, रूप-गुण पर, मंत्र-मुग्ध थे । नवविवाहित जोड़े ने नैसर्गिक प्रीत-रीत की श्रंगारित वेला में विचरण आरंभ ही किया था। विवाह को सात दिन भी नहीं हुए थे, दोनों के हाथों की मेहंदी और पैरों का आलता सूखा भी न था। मेवाड़ के राणा राज सिंह का संदेशा आया कि औरंगजेब की सहायता करने आ रही सेना को रोकने के लिए ,राव रतन सिंह चूडा़वत को, तुरंत रण-क्षेत्र के लिए निकलना होगा । राणा राज सिंह स्वयं युद्ध में संलग्न है ।
राणा राज सिंह और औरंगजेब के आमने- सामने खड़े होने का प्रमुख कारण था संपूर्ण हिंदू जाति का अपमान। “इस्लाम कबूल करो या हिंदू बने रहने का दंड भरो।”

प्रेम-प्रस्फुटन काल में, एक दूसरे के प्रति आसक्ति और मोह में डूबे, इस नवविवाहित जोड़े के लिए , यह संदेशा किसी वज्रपात से कम न था।

राजपूती आन-बान और शान के लिए, दोनों ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए , “संदेशे” को शिरोधार्य किया । राव चूड़ावत ने तुरंत अपनी सैन्य टुकड़ी को चलने का निर्देश दिया। हाड़ी रानी ने शौर्य गाथाओं के साथ, उत्साहवर्धन करते हुए, राव रतन सिंह चूडा़वत का विजय तिलक किया।

रण-क्षेत्र का रास्ता तय करते-करते, चूड़ावत का मन, प्रेम की गलियों में भटक गया और उसने अपने विश्वस्त सैनिक को, हाड़ी रानी से प्रेम की कोई निशानी लाने को कह दिया ।

सैनिक ने हाड़ी रानी को राव का संदेश देकर निशानी मांगी । राजपूत रानी समझ गई कि उसके मोह में पड़े चूडा़वत, इस स्थिति में अपना पराक्रम नहीं दिखा पाएंगे, तो क्या होगा !
रानी ने एक कठोर निर्णय लिया और अपने प्रिय राव रतन सिंह चुंडावत के लिए संदेश लिख दिया, और दासी को निशानी देने की आज्ञा दी।

स्वर्णथाल में सजाकर, रानी की चुनरी से ढककर, रानी की दी हुई “निशानी” संदेश-पत्र के साथ, मलिन-मुख सैनिक ने चूडा़वत को सौंप दी।
हाल ही में संपन्न विवाह की मधुरिम अनुभूतियों की यादों से झंकृत, प्रतीक्षारत चूड़ावत ने आतुरता के साथ निशानी को अनावृत किया तो “हाड़ी रानी का कटा हुआ शीश” देखकर अचंभित रह गया तथा अत्यंत ग्लानि और दुख से भर गया । जड़ हुए शरीर के, कांपते हाथों और अश्रुपूरित नेत्रों से, रानी के संदेश को पढ़ा – “अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं, मोह के बंधन काट रही हूं, कर्तव्य पथ पर चलकर, विजयश्री प्राप्त करें, हर जन्म में आपकी बाट जोह रही हूं।” रानी की अंतिम इच्छा से प्रेरित होकर, जड़ हुए चूड़ावत में पुनः चेतना लौटी और उसने रानी के शीश को हृदय से लगा उसके केशों की माला पहनकर , अत्यंत क्रोध में भरकर मुगल सेना का संहार करना शुरू कर दिया।

राव रतन सिंह चू़डा़वत कहर बनकर औरंगजेब की सेना पर टूट पड़ा, उसे पीछे खदेड़ कर विजयश्री प्राप्त की ।

युद्ध में अपने पति की आन-बान और शान तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए, वीर क्षत्राणी “हाड़ी रानी” ने स्वयं अपना शीश काटकर अकल्पनीय बलिदान दिया।
वंदे मातरम!

विधु गर्ग