भारत का संविधान -1

भारत का संविधान

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति आदिकालीन है। ज्ञान-विज्ञान युक्त परंपराएं वैदिक युगीन हैं। “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया” एवं “वसुधैव कुटुंबकम” जैसे सूत्र-भाव भारतीय जनजीवन के मूल में व्यवहारित हैं। “कर्म ही धर्म है” इसी प्रेरणा के चलते भारत के सामान्य लोक-जन ने, पिछले 1000- 1100 वर्षों से, आक्रांताओं के अत्याचार के बाद भी, सर्वस्पर्शी-समावेशी भाव का परित्याग नहीं किया।

वर्ष 1947 में “अखंड भारतवर्ष”, “स्वतंत्र-भारत” के रूप में वैश्विक मानचित्र पर चिन्हित हुआ।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में, भारत के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों के सहयोग से, भारतीय जन-मानस की मूल अवधारणा स्वरूप, सैकड़ों-हजारों वर्षों से चली आ रही,

लोकतांत्रिक परंपराओं को,
अधिकारों और कर्तव्यों के लेखे-जोखे को,
संपूर्ण भारतीय क्षेत्र के प्रतिनिधित्व को,
वैश्विक स्तर पर कदम-ताल करने को,
समय की गति से सामंजस्य बिठाने हेतु संशोधनों आदि के प्रावधानों को,
“भारत के संविधान” के रूप में संकलित करने का प्रयास किया गया है।

वंदे मातरम!!

विधु गर्ग